राग और द्वेष का अर्थ क्रमशः किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के प्रति आसक्ति या इच्छा और घृणा या अरुचि है। ये दो विपरीत भावनाएँ हैं जो किसी भी स्थिति में हमारे मन और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। राग में हम किसी चीज़ की ओर खिंचे चले जाते हैं, और द्वेष में उससे दूर भागते हैं।
राग (आसक्ति)
परिभाषा:
किसी चीज़ या व्यक्ति के प्रति अत्यधिक जुड़ाव या चाह रखना। यह एक प्रकार का आकर्षण है।
प्रकार:
यह इच्छा, आसक्ति या बौद्धिक पसंद के रूप में हो सकती है।
प्रभाव:
अत्यधिक राग दुख का कारण बनता है, क्योंकि यह छोड़ने या किसी भी चीज़ से अलग होने की भावना को मुश्किल बना देता है।
द्वेष (घृणा)
परिभाषा:
किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना से घृणा करना, उससे बचकर रहना या उसके प्रति अरुचि रखना।
प्रकार:
यह किसी चीज़ के प्रति नकारात्मक भावनाएँ और शत्रुतापूर्ण रवैया हो सकता है।
प्रभाव:
द्वेष, राग की तुलना में अधिक तीव्र हो सकता है और अक्सर बिना किसी स्पष्ट कारण के दूसरों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा पैदा करता है।
संतुलन और माध्यस्थता
योग और ध्यान जैसे दर्शन में, इन दोनों भावनाओं को रोकना महत्वपूर्ण माना जाता है।
राग और द्वेष से मुक्त होकर माध्यस्थता (अप्रभावित रहना) और समता (संतुलित व्यवहार) का पालन करना जीवन को संतुलित करता है।
कहा जाता है कि राग से बचकर, व्यक्ति द्वेष से भी बच जाता है।
राग द्वेष से दूर रहकर ही निष्पक्ष और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
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