
संक्षिप्त परिचय राग बसंत-
"दो मध्यम कोमल ऋषभ चढ़त न पंचम कीन्ह।
स-म वादी संवादी ते, यह बसंत कह दीन्ह॥'
आरोह- सा ग, म॑ ध॒ रें॒ सां, नि सां।
अवरोह- रें॒ नि ध॒ प, म॑ ग म॑ ऽ ग, म॑ ध॒ ग म॑ ग, रे॒ सा।
पकड़- म॑ ध॒ रें॒ सां, नि ध॒ प, म॑ ग म॑ ऽ ग।
वादी स्वरः सा
संवादीः म
थाट- पूर्वी (प्रचलित)
इस राग के बारे में कुछ मतभेद भी हैं। पहले मतानुसार इस राग में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होना चाहिये, मगर दूसरे मतानुसार दोनो म का प्रयोग होना चाहिये जो कि आज प्रचलन में है।
विशेषता- उत्तरांग प्रधान राग होने की वजह से इसमें तार सप्तक का सा ख़ूब चमकता है। शुद्ध म का प्रयोग केवल आरोह में एक विशेष तरह से होता है- सा म, म ग, म॑ ध॒ सां।
गायन समय- रात्रि का अंतिम प्रहर (मगर बसंत ऋतु में इसे हर समय गाया बजाया जा सकता है।
इसे परज राग से बचाने के लिये आरोह में नि का लंघन करते हैं-
सा ग म॑ ध॒ सां
या
सा ग म॑ ध॒ रें॒ सां
विशेष स्वर संगतियाँ-
१) प म॑ ग, म॑ ऽ ग
२) म॑ ध॒ रें सां
३) सा म ऽ म ग, म॑ ध॒ रें॒ सां
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