शनिवार, 22 मार्च 2014

राग का परिचय

राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं। यह संगीत का मूलाधार है। 'राग' शब्द का उल्लेख भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में भी मिलता है। 'राग' में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों होते हैं। राग वह सुन्दर रचना है, जो कानों को अच्छी लगे।

राग यमन

प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद ।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥
राग का परिचय -
1) इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया।

राग बसंत

राग बसंत या राग वसंत शास्त्रीय संगीत की हिंदुस्तानी पद्धति का राग है। वसंत का अर्थ वसंत ऋतु से है, अतः इसे विशेष रुप से वसंत ऋतु में गाया बजाया जाता है। इसके आरोह में पाँच तथा अवरोह में सात स्वर होते हैं। अतः यह औडव-संपूर्ण जाति का राग है। वसंत ऋतु में गाया जाने के कारण इस राग में होलियाँ बहुत मिलती हैं। यह प्रसन्नता तथा उत्फुल्लता का राग है। ऐसा माना जाता है कि इसके गाने व सुनने से मन प्रसन्न हो जाता है। इसका गायन समय रात का अंतिम प्रहर है किंतु यह दिन या रात में किसी समय भी गाया बजाया जा सकता है। रागमाला में इसे राग हिंडोल का पुत्र माना गया है। यह पूर्वी थाट का राग है। शास्त्रों में इससे मिलते जुलते एक राग वसंत हिंडोल का उल्लेख भी मिलता है। यह एक अत्यंत प्राचीन राग है जिसका उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

राग क्या है

राग सुरों के आरोहण और अवतरण का ऐसा नियम है जिससे संगीत की रचना की जाती है। पाश्चात्य संगीत में "improvisation" इसी प्रकार की पद्धति 

परिचय[संपादित करें]

'राग' शब्द संस्कृत की 'रंज्' धातु से बना है। रंज् का अर्थ है रंगना। जिस तरह एक चित्रकार तस्वीर में रंग भरकर उसे सुंदर बनाता है, उसी तरह संगीतज्ञ मन और शरीर को संगीत के सुरों से रंगता ही तो हैं। रंग में रंग जाना मुहावरे का अर्थ ही है कि सब कुछ भुलाकर मगन हो जाना या लीन हो जाना। संगीत का भी यही असर होता है। जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है।

राग सूची

संगीत शास्त्र परिचय

भारतीय संगीत

भारतीय संगीत से, सम्पूर्ण भारतवर्ष की गायन वादन कला का बोध होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की 2 प्रणालियाँ हैं। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति अथवा कर्नाटक संगीत प्रणाली और दूसरी हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली, जो कि समुचे उत्तर भारतवर्ष मे प्रचलित है। दक्षिण भारतीय संगीत कलात्मक खूबियों से परिपूर्ण है। और उसमें जनता जनार्दन को आकर्षित करने की और समाज मे संगीत कला की मौलिक विधियों द्वारा कलात्मक संस्कार करने की क्षमता है।
हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली के गायन वादन में, जन साधारण को कला की ओर आकर्षित करते हुए, भावना तथा रस का ऐसा स्त्रोत बहता है कि श्रोतृवर्ग स्वरसागर में डूब जाता है और न केवल मनोरन्जन होता है अपितु आत्मानन्द की अनुभूति भी होती है; जो कि योगीजन अपनी आत्मसमाधि मे लाभ करते हैं।

संगीत

संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रारम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। वैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़

ग़ज़ल- मेरी आवाज़ में- कुछ तो दुनिया के इनायात...


राग ललित- तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...

द्वै मध्यम कोमल ऋषभ, पंचम सुर बरजोई।
सम संवादी वादी ते, ललित राग शुभ होई॥

ठाठ - पूर्वी
वर्ज्य स्वर- प
जाति - षाडव षाडव
वादी- शुद्ध म
संवादी- सा
गायन समय- दिन का प्रथम प्रहर

राग ललित- तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...


द्वै मध्यम कोमल ऋषभ, पंचम सुर बरजोई।
सम संवादी वादी ते, ललित राग शुभ होई॥

ठाठ - पूर्वी
वर्ज्य स्वर- प
जाति - षाडव षाडव
वादी- शुद्ध म
संवादी- सा
गायन समय- दिन का प्रथम प्रहर

आरोह: ऩि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ नि सां।
अवरोह: रें॒ नि ध॒ म॑ म ग रे॒ सा।
पकड़:  नि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ म॑ म ग, ग ‍ऽ म॑ ग रे॒ सा।

-कुछ गायक ललित में शुद्ध धैवत का प्रयोग करते हैं, किंतु अधिकांश गायक इसमें कोमल धैवत ही प्रयोग करते हैं।  भातखंडे जी ने इसमें शुद्ध ध का प्रयोग ही माना है और इसे मारवा थाठ के अंतर्गत रखा है। 

- दोनों मध्यमों का एक साथ प्रयोग इस राग की विशेषता है।  किसी भी राग में किसी स्वर के दो रूपों का एक साथ प्रयोग होना नियमों के विरुद्ध माना जाता है मगर, राग की रंजकता बढ़ाने के लिये, इस नियम के अपवाद में राग ललित ही एक ऐसा राग है जहाँ किसी स्वर का दो रूपों में एक साथ प्रयोग किया गया है।  

-  न्यास के स्वर-  ग और म

- " ध॒, म॑ म ग " इस स्वर सनुदाय का प्रयोग मीड़ में लिया जाता है और इसे ललितांग कहते हैं।

- इस राग का चलन सा से प्रारंभ न हो कर, मंद्र नि से हुआ करती है।  जैसे- ऩि रे॒ ग म...


तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...

उस्ताद अमीर खां की आवाज़ में-


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और प्रसिद्ध- जोगिया मेरे घर आये- उस्ताद रशीद खां  के स्वर में- उसके पहले बड़ा खयाल। 


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(ईस्निप्स के सौजन्य से)

गुरुवार, 20 मार्च 2014

संगीत वही जो दिल को छू ले

सूफी गायक कैलाश खेर की गिनती उन गायकों में की जा सकती है, जो संगीत के साथ हमेशा कुछ नया प्रयोग करते हैं और उनकी इन कोशिशों को संगीत प्रेमियों ने हमेशा ही सराहा है। कैलाश खेर ने पहली बार फिल्म ‘अंदाज’के लिए ‘रब्बा इश्क ना होए’गीत गाया था, लेकिन उन्हें असली प्रसिद्धि फिल्म ‘वैसा भी होता है’के गाने ‘अल्लाह के बंदे’के बाद मिली। इस गाने ने उन्हें रातों-रात शिखर तक पहुंचा दिया और लोग उन्हें जानने लगे। एक अलग आवाज और शैली की वजह से लोगों ने उन्हें  बहुत पसंद किया और आज स्थिति यह है कि कैलाश खेर को प्रतिष्ठित पद्मश्री अवार्ड देने के  बारे में सोचा जा रहा है। इस अंतरंग इंटरव्यू में कैलाश खेर संगीत की दुनिया में अपने अब तक के सफर की चर्चा कर रहे हैं :  

सबको नचाएं अपनी धुन पर

सबको नचाएं अपनी धुन पर
सबको नचाएं अपनी धुन पर
शादी हो, जन्मदिन की पार्टी हो या फिर कोई अन्य खुशी का मौका, डिस्क जॉकी के बिना अब पूरा महफिल अधूरा जान पड जाता है। महानगरों में ही नहीं, डिस्क जॉकी की पहुंच आज छोटे शहरों में भी हो रही है। वे अपनी खास अदाओं और हुनर से महफिल में जान डाल देते हैं और छोड जाते हैं जेहन में म्यूजिक का अनोखा रोमांच। यदि आपको भी संगीत का खास शौक है। करेंट म्यूजिक हिट्स, ट्रेंड के बारे में जानकारी रखते हैं, तो डिस्क जॉकी आपके लिए है। 

सुर-ताल के इंजीनियर

सुर-ताल के इंजीनियर
सुर-ताल के इंजीनियर
कल और आज में बहुत फर्क है। अगर आप कुंदनलाल सहगल का कोई रिकॉर्ड सुनते हैं, तो उसमें मूल आवाज सुनने को मिलती है। हवा और आसपास की आवाजें भी उसमें शामिल हो जाती थीं। दरअसल, पहले आवाज को ओरिजनली रिकॉर्ड किया जाता था, परंतु आज उन्नत तकनीक के जरिये उसे रिकॉर्ड किया जाता है और उसमें आवश्यकतानुसार बदलाव लाए जाते हैं। यह सब संभव हो पाया है ऑडियो इंजीनियरिंग से।