द्वै मध्यम कोमल ऋषभ, पंचम सुर बरजोई।
सम संवादी वादी ते, ललित राग शुभ होई॥
ठाठ - पूर्वी
वर्ज्य स्वर- प
जाति - षाडव षाडव
वादी- शुद्ध म
संवादी- सा
गायन समय- दिन का प्रथम प्रहर
आरोह: ऩि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ नि सां।
अवरोह: रें॒ नि ध॒ म॑ म ग रे॒ सा।
पकड़: नि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ म॑ म ग, ग ऽ म॑ ग रे॒ सा।
-कुछ गायक ललित में शुद्ध धैवत का प्रयोग करते हैं, किंतु अधिकांश गायक इसमें कोमल धैवत ही प्रयोग करते हैं। भातखंडे जी ने इसमें शुद्ध ध का प्रयोग ही माना है और इसे मारवा थाठ के अंतर्गत रखा है।
- दोनों मध्यमों का एक साथ प्रयोग इस राग की विशेषता है। किसी भी राग में किसी स्वर के दो रूपों का एक साथ प्रयोग होना नियमों के विरुद्ध माना जाता है मगर, राग की रंजकता बढ़ाने के लिये, इस नियम के अपवाद में राग ललित ही एक ऐसा राग है जहाँ किसी स्वर का दो रूपों में एक साथ प्रयोग किया गया है।
- न्यास के स्वर- ग और म
- " ध॒, म॑ म ग " इस स्वर सनुदाय का प्रयोग मीड़ में लिया जाता है और इसे ललितांग कहते हैं।
- इस राग का चलन सा से प्रारंभ न हो कर, मंद्र नि से हुआ करती है। जैसे- ऩि रे॒ ग म...
तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
उस्ताद अमीर खां की आवाज़ में-
तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
उस्ताद अमीर खां की आवाज़ में-
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और प्रसिद्ध- जोगिया मेरे घर आये- उस्ताद रशीद खां के स्वर में- उसके पहले बड़ा खयाल।
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