
सूफी गायक कैलाश खेर की गिनती उन गायकों में की जा सकती है, जो संगीत के साथ हमेशा कुछ नया प्रयोग करते हैं और उनकी इन कोशिशों को संगीत प्रेमियों ने हमेशा ही सराहा है। कैलाश खेर ने पहली बार फिल्म ‘अंदाज’के लिए ‘रब्बा इश्क ना होए’गीत गाया था, लेकिन उन्हें असली प्रसिद्धि फिल्म ‘वैसा भी होता है’के गाने ‘अल्लाह के बंदे’के बाद मिली। इस गाने ने उन्हें रातों-रात शिखर तक पहुंचा दिया और लोग उन्हें जानने लगे। एक अलग आवाज और शैली की वजह से लोगों ने उन्हें बहुत पसंद किया और आज स्थिति यह है कि कैलाश खेर को प्रतिष्ठित पद्मश्री अवार्ड देने के बारे में सोचा जा रहा है। इस अंतरंग इंटरव्यू में कैलाश खेर संगीत की दुनिया में अपने अब तक के सफर की चर्चा कर रहे हैं :
आप इस इंडस्ट्री में सिर्फ एक दशक से ही हैं, तो अपने करियर में इतनी जल्दी पद्मश्री के बारे में सोचकर कैसा लगता है?
इस इंडस्ट्री में मैं भले ही दस साल से दिख रहा हूं, मगर गाने और सीखने के मेरे प्रयास दस सालों से भी पुराने हैं। मेरी यात्रा किसी को भी अचंभित कर सकती है।
आप ऐसा क्यूं कहते हैं?
मेरे करियर के शुरू से ही मेरे साथ चमत्कार हुए हैं। मेरा पहला गाना ‘अल्लाह के बंदे’बहुत बड़ा हिट हुआ था। भगवान ने मेरा एक गाना 100 गानों के बराबर बना दिया था। मैंने वो गाना स्क्रीन पर भी गाया था, और ये उस वक्त बड़ी बात थी, क्योंकि पहली बार किसी सिंगर का चेहरा स्क्रीन पर आ रहा था। लोग कैलाश खेर को पहचानने लगे थे। लोग हमारा संगीत सिर्फ मजे के लिए ही नहीं सुनते, मगर इसलिए भी क्योंकि उन्हें लगता है कि संगीत उनके लिए किसी उपचार की तरह है।
आपके बैंड कैलासा (नरेश और परेश के साथ) में क्या आप सिर्फ सिंगिंग तक ही सीमित रहते हैं या संगीत की पूरे प्रक्रिया से जुड़ते हैं?
कुछ हद तक। इंडस्ट्री में आने के वक्त मेरे पास कुछ ट्यून्स तैयार थीं। मैं गाने लिखता भी हूं और गाता भी हूं। मैं असल में एक पूरा पैकेज हूं और नरेश और परेश हैं तो सोने पे सुहागा। वो दोनों मेरे सच्चे साथी हैं। वो संगीत के बारे में मेरे नजरिए का ख्याल रखते हैं। हम तीनों के बीच कई समानताएं हैं, मगर वो ड्यूड्स हैं और मैं देसी….. बहुत रोचक संगम है। फिर भी हमारा संगीत लोगों के दिलों को छूकर गुजरता है और इसे मैं हमारी कामयाबी मानता हूं।
बॉलीवुड फिल्म म्यूजिक पिछले सालों में कितना बदला है?
एक म्यूजिशियन को प्रयोग करने की अब पूरी छूट है, और यह नई विचारधारा काफी तेजी से फैल रही है। पहले चलन था एक हिट गाने को कॉपी करने का, और हर गाना लगभग एक जैसा ही लगता था। लकीर के फकीर ज्यादा थे, एक गाना हिट हो गया उसी को बेंचमार्क मानते थे। मगर अब लोग प्रयोगों की तरफ खुले हुए हैं और यह एक अच्छी बात है। आज प्रतिभा को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है।
आजकल कई लोगों का कहना है कि नॉन फिल्मी म्यूजिक को अब मार्केट में कोई नहीं लेना चाहता। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
प्राइवेट एलबमों के आज भी कई ग्राहक हैं। यह म्यूजिक खत्म नहीं हुआ है। यह दुनिया इतनी बड़ी है कि यहां म्यूजिक का कोई भी रूप रह सकता है। नॉन फिल्मी म्यूजिक भले ही रेडियो स्टेशन्स पर प्ले नहीं होता हो, मगर आईट्यून्स और यूट्यूब जैसे दूसरे रास्ते भी हैं। हमने अपने एलबम ‘रंगीले’को कैलासा रेकॉड्र्स पर कुछ समय पहले रिलीज किया था, और इसको लेकर प्रतिक्रिया अद्भुत थी। क्या आप यकीन करेंगे कि यह हमारे लिए बेस्ट सेलिंग एलबम था! यह बाजार बहुत बड़ा है, आपको बस धैर्य रखना होगा और आगे बढऩे के लिए सही रास्ता चुनना होगा। अगर आपके प्रॉडक्ट में दम है, तो लोग उसे जरूर अपनाएंगे, क्योंकि लोग नई चीजें सुनने के लिए बेताब रहते हैं।
इस इंडस्ट्री में मैं भले ही दस साल से दिख रहा हूं, मगर गाने और सीखने के मेरे प्रयास दस सालों से भी पुराने हैं। मेरी यात्रा किसी को भी अचंभित कर सकती है।
आप ऐसा क्यूं कहते हैं?
मेरे करियर के शुरू से ही मेरे साथ चमत्कार हुए हैं। मेरा पहला गाना ‘अल्लाह के बंदे’बहुत बड़ा हिट हुआ था। भगवान ने मेरा एक गाना 100 गानों के बराबर बना दिया था। मैंने वो गाना स्क्रीन पर भी गाया था, और ये उस वक्त बड़ी बात थी, क्योंकि पहली बार किसी सिंगर का चेहरा स्क्रीन पर आ रहा था। लोग कैलाश खेर को पहचानने लगे थे। लोग हमारा संगीत सिर्फ मजे के लिए ही नहीं सुनते, मगर इसलिए भी क्योंकि उन्हें लगता है कि संगीत उनके लिए किसी उपचार की तरह है।
आपके बैंड कैलासा (नरेश और परेश के साथ) में क्या आप सिर्फ सिंगिंग तक ही सीमित रहते हैं या संगीत की पूरे प्रक्रिया से जुड़ते हैं?
कुछ हद तक। इंडस्ट्री में आने के वक्त मेरे पास कुछ ट्यून्स तैयार थीं। मैं गाने लिखता भी हूं और गाता भी हूं। मैं असल में एक पूरा पैकेज हूं और नरेश और परेश हैं तो सोने पे सुहागा। वो दोनों मेरे सच्चे साथी हैं। वो संगीत के बारे में मेरे नजरिए का ख्याल रखते हैं। हम तीनों के बीच कई समानताएं हैं, मगर वो ड्यूड्स हैं और मैं देसी….. बहुत रोचक संगम है। फिर भी हमारा संगीत लोगों के दिलों को छूकर गुजरता है और इसे मैं हमारी कामयाबी मानता हूं।
बॉलीवुड फिल्म म्यूजिक पिछले सालों में कितना बदला है?
एक म्यूजिशियन को प्रयोग करने की अब पूरी छूट है, और यह नई विचारधारा काफी तेजी से फैल रही है। पहले चलन था एक हिट गाने को कॉपी करने का, और हर गाना लगभग एक जैसा ही लगता था। लकीर के फकीर ज्यादा थे, एक गाना हिट हो गया उसी को बेंचमार्क मानते थे। मगर अब लोग प्रयोगों की तरफ खुले हुए हैं और यह एक अच्छी बात है। आज प्रतिभा को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है।
आजकल कई लोगों का कहना है कि नॉन फिल्मी म्यूजिक को अब मार्केट में कोई नहीं लेना चाहता। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
प्राइवेट एलबमों के आज भी कई ग्राहक हैं। यह म्यूजिक खत्म नहीं हुआ है। यह दुनिया इतनी बड़ी है कि यहां म्यूजिक का कोई भी रूप रह सकता है। नॉन फिल्मी म्यूजिक भले ही रेडियो स्टेशन्स पर प्ले नहीं होता हो, मगर आईट्यून्स और यूट्यूब जैसे दूसरे रास्ते भी हैं। हमने अपने एलबम ‘रंगीले’को कैलासा रेकॉड्र्स पर कुछ समय पहले रिलीज किया था, और इसको लेकर प्रतिक्रिया अद्भुत थी। क्या आप यकीन करेंगे कि यह हमारे लिए बेस्ट सेलिंग एलबम था! यह बाजार बहुत बड़ा है, आपको बस धैर्य रखना होगा और आगे बढऩे के लिए सही रास्ता चुनना होगा। अगर आपके प्रॉडक्ट में दम है, तो लोग उसे जरूर अपनाएंगे, क्योंकि लोग नई चीजें सुनने के लिए बेताब रहते हैं।
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