सुरताल इंडिया ब्लॉग - भारतीय संगीत की अनमोल धरोहर सुरताल इंडिया (surtaalindia.blogspot.com) एक समर्पित हिंदी ब्लॉग है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराई और सुंदरता को सरल भाषा में आमजन तक पहुँचाता है। यह ब्लॉग संगीत प्रेमियों, विद्यार्थियों और शौकिया कलाकारों के लिए एक विश्वसनीय स्रोत है, जहाँ राग-रागिनियों, थाट प्रणाली, स्वर लक्षण और संगीत शास्त्र के जटिल विषयों को रोचक ढंग से समझाया जाता है। ब्लॉग की मुख्य विशेषताएँ: राग-द्वेष से लेकर रागों के नाम तक: राग और द्वेष की दार्शनिक व्याख्या से शुर
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बुधवार, 25 मार्च 2020
शनिवार, 22 मार्च 2014
राग का परिचय
राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं। यह संगीत का मूलाधार है। 'राग' शब्द का उल्लेख भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में भी मिलता है। 'राग' में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों होते हैं। राग वह सुन्दर रचना है, जो कानों को अच्छी लगे।
राग क्या है
राग सुरों के आरोहण और अवतरण का ऐसा नियम है जिससे संगीत की रचना की जाती है। पाश्चात्य संगीत में "improvisation" इसी प्रकार की पद्धति
परिचय[संपादित करें]
'राग' शब्द संस्कृत की 'रंज्' धातु से बना है। रंज् का अर्थ है रंगना। जिस तरह एक चित्रकार तस्वीर में रंग भरकर उसे सुंदर बनाता है, उसी तरह संगीतज्ञ मन और शरीर को संगीत के सुरों से रंगता ही तो हैं। रंग में रंग जाना मुहावरे का अर्थ ही है कि सब कुछ भुलाकर मगन हो जाना या लीन हो जाना। संगीत का भी यही असर होता है। जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है।
ग़ज़ल- मेरी आवाज़ में- कुछ तो दुनिया के इनायात...
राग ललित- तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
द्वै मध्यम कोमल ऋषभ, पंचम सुर बरजोई।
सम संवादी वादी ते, ललित राग शुभ होई॥
ठाठ - पूर्वी
वर्ज्य स्वर- प
जाति - षाडव षाडव
वादी- शुद्ध म
संवादी- सा
गायन समय- दिन का प्रथम प्रहर
राग ललित- तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
द्वै मध्यम कोमल ऋषभ, पंचम सुर बरजोई।
सम संवादी वादी ते, ललित राग शुभ होई॥
ठाठ - पूर्वी
वर्ज्य स्वर- प
जाति - षाडव षाडव
वादी- शुद्ध म
संवादी- सा
गायन समय- दिन का प्रथम प्रहर
आरोह: ऩि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ नि सां।
अवरोह: रें॒ नि ध॒ म॑ म ग रे॒ सा।
पकड़: नि रे॒ ग म, म॑ म ग, म॑ ध॒ म॑ म ग, ग ऽ म॑ ग रे॒ सा।
-कुछ गायक ललित में शुद्ध धैवत का प्रयोग करते हैं, किंतु अधिकांश गायक इसमें कोमल धैवत ही प्रयोग करते हैं। भातखंडे जी ने इसमें शुद्ध ध का प्रयोग ही माना है और इसे मारवा थाठ के अंतर्गत रखा है।
- दोनों मध्यमों का एक साथ प्रयोग इस राग की विशेषता है। किसी भी राग में किसी स्वर के दो रूपों का एक साथ प्रयोग होना नियमों के विरुद्ध माना जाता है मगर, राग की रंजकता बढ़ाने के लिये, इस नियम के अपवाद में राग ललित ही एक ऐसा राग है जहाँ किसी स्वर का दो रूपों में एक साथ प्रयोग किया गया है।
- न्यास के स्वर- ग और म
- " ध॒, म॑ म ग " इस स्वर सनुदाय का प्रयोग मीड़ में लिया जाता है और इसे ललितांग कहते हैं।
- इस राग का चलन सा से प्रारंभ न हो कर, मंद्र नि से हुआ करती है। जैसे- ऩि रे॒ ग म...
तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
उस्ताद अमीर खां की आवाज़ में-
तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन...
उस्ताद अमीर खां की आवाज़ में-
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और प्रसिद्ध- जोगिया मेरे घर आये- उस्ताद रशीद खां के स्वर में- उसके पहले बड़ा खयाल।
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